समाज के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेंदारी का निर्वहन यू तो प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है और इसका निर्वहन अपनी छमता से करने का प्रयास अवश्य किया जाना चाहिये। इस बात का आभाष करते हुऐ मेरे द्वारा एक बहुत छोटा सा प्रयास किया गया है। मैनें विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवम वेवसाइट का अध्ययन किया करते हुये पाया है कि नई पीढी जो कम्पयूटर के अधिक करीब है, इन्टरनेट को जानकारियाँ प्राप्त करने का एक सर्वोत्तम एवम सहज साधन मानते हैं। काफी हद तक यह सही भी है क्योंकि एक क्लिक पर सारी दुनिया में हो रहे कार्यो कि जानकारियाँ उनके सामने होती हैं। इन्टरनेट को सर्च करते हुये यह पाया गया है कि विश्वकर्मा समाज से सम्बन्धित अनेक प्रयास भी बिखरे हुये हैं जबकि वे सभी अत्यधिक सराहनीय हैं। इस कमी को दूर करने के लिये यह आवश्यक है कि इन्टरनेट पर उपलब्ध सामग्री का नियमित अध्ययन किया जावे एवम उसे एक स्थान पर उपलब्ध कराया जावे। इसकें साथ ही विभिन्न पत्र पत्रिकाओं को सारी दुनिया के सामने लाया जा सके। यह मात्र इन्टरनेट के माध्यम से ही सम्भव हो सकता है अतः इस हेतु मैनें यह ब्लाँग बनाया है जो कि प्राथमिक चरण में है लेकिन मुझे विश्वास है कि आप सभी का सहयोग और मार्गदर्शन प्राप्त कर मैं अवश्य ही सफ़ल रहूंगा।
आपसे अपेक्षा है कि आपके लेख, कार्यक्रमों के चित्र आप हमें भेजें। पत्रिकाओं के सम्पादक अनुमति सहित अपनी पत्रिकाएँ हमे भेजें। हम उन्हें ब्लाँग में स्थान देंगे ताकि एक बडा वर्ग जानकारियों को प्राप्त कर लाभान्वित हो सके।
Wednesday, October 1, 2008
Tuesday, July 22, 2008
शर्मा उपनाम की महर्षि दयानंद द्वारा व्याख्या -
विश्वकर्मा समाज के लोगों द्वारा शर्मा उपनाम का प्रयोग किया जाता है । शर्मा का अर्थ है , कल्याणकारी , सुखदाता । यजुर्वेद अध्याय ४ मंत्र ९ में दिए श्लोक का महर्षि दयानंद ने जो भाष्य किया है , उसका पद्यानुवाद इस प्रकार है -
सारे जग को सुखी बनाते , हों रक्षक शिल्पी विद्वान् ।
शिल्प वेद विद्या को सीखें , करें आपको नित्य नमन ॥
ॠक ,यजुसाम ,वेदों को पढकर , शिल्प यज्ञ में करते योग ।
इसीलिए , शर्मा सुखकारी , कहलाते हैं शिल्पी लोग॥
'' सामाजिक - परिवेश में विश्वकर्मा - वंशी '' - महादेव प्रसाद जांगिड
सारे जग को सुखी बनाते , हों रक्षक शिल्पी विद्वान् ।
शिल्प वेद विद्या को सीखें , करें आपको नित्य नमन ॥
ॠक ,यजुसाम ,वेदों को पढकर , शिल्प यज्ञ में करते योग ।
इसीलिए , शर्मा सुखकारी , कहलाते हैं शिल्पी लोग॥
'' सामाजिक - परिवेश में विश्वकर्मा - वंशी '' - महादेव प्रसाद जांगिड
Tuesday, July 8, 2008
भगवान विश्वकर्मा के वंशज देश के प्रत्येक क्षेत्र में अपने गुणों से अपनी पहचान बनाये हुए है । समाज बंधुओं का देश में बल्कि दुनिया में उल्लेखनीय योगदान होने के बाद भी कुछेक ऐसे कारण है। जिनकी वजह से हम अपना महत्व स्थापित करने में असफल रहे है। इसी वजह से हमारा समाज आज भी अनेक समस्यायों का शिकार है, जिसका सीधा असर हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढी पर हो रहा है और होगा। ऐसी विभिन्न समस्याओं को एक मंच पर लाने हेतु इस ब्लॉग का निर्माण किया गया है ताकि न सिर्फ़ हम उन समस्यायों पर विचार कर सके बल्कि उनके समाधान की एक सार्थक पहल भी कर सकें।
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